शेख अफ़रोज़ हरदा mp/सिर्फ़ सात साल के छोटे मासूम से बच्चे ने, जबकि उसके सात साल पूरे होने में भी कुछ महीने बाकी थे, पूरे क़ुरआन का हिफ़्ज़ मुकम्मल कर लिया। यह ख़बर सुनकर दिल खुशी से झूम उठा और अल्लाह के फज़ल को याद करते हुए यह आयत ज़हन में गूंज उठी: "ذَٰلِكَ فَضْلُ ٱللَّهِ يُؤْتِيهِ مَن يَشَآءُ" (यह अल्लाह का फज़ल है जिसे चाहे अता करे)।बेशक यह अल्लाह तआला का करम है, और यह उसी की मेहरबानी से मुमकिन हुआ।क़ुरआन का यह करिश्मा उत्तर प्रदेश के ज़िला बलरामपुर के एक गाँव बरकात नगर लखाही में देखने को मिला, जो कि न केवल मेरा भी आबाई गाँव है बल्कि एक लंबे अरसे से उलमा और क़ुर्रा का मरकज़ भी रहा है। इस गाँव के एक दीनदार और इल्मी ख़ानदान से ताल्लुक रखने वाले हज़रत क़ारी रज़ीउल्लाह हाशमती (इब्ने हाफ़िज़ुल्लाह मरहूम) के साहबज़ादे, अज़ीज़म हाफ़िज़ *मोहम्मद अहमद रज़ा* ने इतनी छोटी उम्र में मुकम्मल क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया। अगर उसकी मासूम उम्र को देखा जाए तो ऐसा महसूस होता है कि वह क़ुरआन हिफ़्ज़ करने के लिए ही पैदा हुआ था।बेशक, इस कामयाबी के पीछे उसके वालिदैन की मेहनत और लगन छुपी हुई है, जिन्होंने अपनी जिम्मेदारियों को बख़ूबी निभाया और दूसरी वालिदैन के लिए एक मिसाल क़ायम की। ख़ासतौर पर बच्चे की वालिदा (जिनके बारे में ख़ुद बच्चे के वालिद क़ारी रज़ीउल्लाह साहब फ़रमाते हैं) की दिन-रात की मेहनत ने इसे मुमकिन बनाया। जब आमतौर पर माँएं अपने बच्चों पर लाड़-प्यार निछावर करती हैं, तो यह माँ इल्म-ए-दीन के उजाले बिखेरने में मशगूल थी। (सभी ऐसी माँओं को सलाम!)इस खुशी के मौके पर पूरा गाँव बरकात नगर लखाही जश्न में डूबा हुआ है। यह न केवल इस गाँव के लिए बल्कि ख़ास तौर पर हज़रत क़ारी रज़ीउल्लाह हाशमती और उनके पूरे ख़ानदान के लिए फ़ख्र और इज़्ज़त की बात है।अल्लाह तआला से दुआ है कि अज़ीज़म *हाफ़िज़ मोहम्मद अहमद रज़ा* को आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ां फ़ाज़िले बरेलवी और बुजुर्गाने अहले सुन्नत की तअलीमात से मालामाल करे। उनके इल्म व अमल और उम्र में बेपनाह बरकतें अता फरमाए और हर तरह की मुसीबत और बला से महफ़ूज़ रखे। साथ ही इल्म-ए-दीन में बुलंदी अता करे। आमीन।11 फरवरी 2025, मंगलवार इस नेमत-ए-अज़ीम के शुक्राने में एक महफ़िल-ए-मीलादुन्नबी (ﷺ) का शानदार इंतिज़ाम किया गया, जिसमें ताजपोशी (दस्तारबंदी) की पुरनूर महफ़िल भी हुई। इस मुबारक महफ़िल में कई मशहूर उलमा-ए-किराम और मुफ़्ती-ए-अज़ाम शरीक हुए, जिनमें ख़ास तौर पर:फ़क़ीह-ए-अस्र और माहिर-ए-जुज़इयात हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मसीह अहमद साहब क़िब्ला (मुफ़्ती-ए-शहर और प्रिंसिपल, जामिया अरबिया अनवारुल क़ुरआन, बलरामपुर)।अमीदुल उलमा और ख़लीफ़ा-ए-हुज़ूर ताजुश्शरीअत, गुल-ए-गुलज़ार-ए-मिल्लत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती कमाल अख़्तर साहब क़िब्ला (शैख़ुल अदब, दारुल उलूम नूरुल हक़, चिरह मोहम्मदपुर, फ़ैज़ाबाद)।चमनिस्तान-ए-रिसालत के महकते फूल हज़रत मौलाना अलहाज सैयद अहमद रज़ा साहब क़िब्ला (अल्लाह उनकी उम्र में बरकत दे)।और दूसरे कई उलमा और इमाम-ए-मसाजिद ने शिरकत की।
नन्हे शहजादे ने सिर्फ सात साल की उम्र हिफ़्ज़े क़ुरआन मुकम्मल किया।